सफर के हमराही तुम्हें दिल कहूं, या दिमाग कहूं
तुमने जो दिया उसे, वफा कहूं या बेवफाई कहूं
तुम ही बताओं जो, नही थी मंजील हमारी
इस इश्क के सफर में, क्यों संग थी तुम्हारी
बिना वादें करके तुमने रस्म भी निभाई
जानाही था एक दिन तो, काहे नज्म़ बुनाई
खयालों में रहते हों, फिर भी दिल नें चोट खायी
अपने ना होतें हूए, धूप में इश्क की रित निभायी
जाते जाते क्यां कहूं, हमने सहि पहली दफा
दुनिया कोरोनासे लतफत, हमें इश्क की महामारी
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