तुम नही हो यह दिल ही नही मानता
तुम हो यह भी तो दिल ही नही मानता
तेरे लब्जों कों कब तक आंखो में सजाऊं
झूठे है तेरे लब्ज यह भी दिल नही मानता
दौडाती हो लब्जों को, हमेशा घोडे की तरह
तुम क्या हो सच में यह मैं भी नही जानता
सेज पे बैठी हो सजकर, मेरे हि मकान के अंदर
क्या करती हो दिन रात, यह भी मैं नही जानता
कई बार कहां अपनेही दिलको मत जा दरपर,
कब लौटता हूं मेरे दर पर पता ही नही चलता
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